नीम करोली बाबा की जीवनी, परिवार, उम्र, शिक्षा, नीम करोली बाबा दरबार, नीम करोली बाबा और मार्क जुकरबर्ग (Neem Karoli Baba Biography in hindi, Age, Height, Family, Neem Karoli Baba & Mark Zukerberg)
भारत हमेशा से ही ऋषि मुनियों की धरती रही है पुरातन काल से लेकर अभी तक भारत ने बहुत से महात्माओं को देखा है महात्माओं ने ही अध्यात्म को पुनः भारत में स्थापित किया है संत और महात्मा हमारे जीवन को प्रकाशमान करते हैं सकारात्मक सोच के साथ एक नई दिशा प्रदान करते हैं।
ऐसे ही महान संतों में गिनती होती है बाबा नीम करोली की जिनका पूरा जीवन चमत्कारों से भरा हुआ है इनके जीवित रहते हुए और समाधि के बाद भी देश विदेश के अनुयायियों का तांता लगा रहता है।
यह वही बाबा है जिन्होंने फेसबुक के संस्थापक ‘मार्क जुकरबर्ग’ और एप्पल के संस्थापक ‘स्टीव जॉब्स’ को नई सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करके नई राय दिखाई थी।
नीम करोली बाबा का जीवन परिचय
पूरा नाम (Full Name) | लक्ष्मी नारायण शर्मा |
प्रसिद्ध नाम (Famous Name) | नीम करोली बाबा, कैंची धाम वाले बाबा |
जन्म (Birthday) | 11 सितंबर 1900 |
जन्म स्थान (Birth Place) | अकबरपुर, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश |
निधन (Death) | 9 सितंबर 1973 |
निधन का कारण (Death Cause) | मधुमेह कोमा |
धर्म (Religion) | हिंदू |
जाति (Cast) | ब्राह्मण |
राष्ट्रीयता (Nationality) | भारतीय |
वैवाहिक स्थिति (Marrital Status) | विवाहित |
विवाह वर्ष (Marrige Year) | 1911 |
पेशा (Profession) | हिंदू गुरु, हनुमान के भक्त |
कौन है नीम करोली बाबा?
नीम करोली बाबा भारत में बीसवीं सदी के महानतम संतों में से शामिल किए जाते हैं जो भगवान हनुमान के अनन्य भक्त थे नीम करोली बाबा को लक्ष्मणदास, हांडी वाला बाबा, और तिकोनिया बाबा के नाम से भी जाना जाता है। जो कि हनुमान जी का साक्षात अवतार माने जाते हैं नीम करोली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था।
नीम करोली बाबा का जन्म एवं शुरुआती जीवन
नीम करोली बाबा का जन्म 11 सितंबर 1900 को फिरोजाबाद जिले के निकट अकबरपुर में हुआ था इनके पिता का नाम पंडित दुर्गा प्रसाद शर्मा है जो कि एक बहुत बड़े जमींदार थे इनका मूल नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा का छोटी उम्र में ही इन्हें अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी बाबा नीम करोली हनुमान जी के भक्तों अवतार माने जाते हैं।
इनका विवाह 11 वर्ष की उम्र में ही हो गया था गृहस्थ जीवन से विचलित होकर इन्होंने शीघ्र ही घर त्याग कर दिया फिर काफी समय तक इधर-उधर भटकते रहे बाबा शुरुआती दौर में गुजरात के मोरबी से 35 किलोमीटर दूर एक गांव में साधना की यहां पर उन्होंने बहुत सारी सिद्धि हासिल की यहां आश्रम के गुरु महाराज ने उनका नाम लक्ष्मण दास रखा बाद में महंत ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया किन्तु अन्य शिष्यों के विवाद के कारण उन्होंने वह स्थान से ही छोड़ दिया।
इसके बाद वे राजकोट के पास बवानिया गांव में आते हैं एक तालाब के किनारे हनुमान जी का मंदिर स्थापित करते हैं यही वह तालाब पर खड़े होकर घंटों तपस्या करते जिसके कारण लोगों ने तराया बाबा के नाम से पुकारने लगे फिर कुछ समय पश्चात से उन्होंने 1917 में एक संत रमाबाई को आश्रम समर्पित कर वहां से आगे की यात्रा पर चल दिए।
नीम करोली बाबा की शिक्षा (Neem Karoli Baba Education)
नीम करोली बाबा की प्रारंभिक शिक्षा उनके गृह नगर अकबरपुर में ही शुरू हुई किंतु शिक्षा में उनका अत्यधिक मन नहीं लगने के कारण उन्होंने अपनी पढ़ाई को छोड़ दिया और योग और ध्यान की दुनिया की ओर निकल गए।
नीम करोली बाबा का परिवार (Neem Karoli Baba Family)
पिता का नाम (Father’s Name) | दुर्गा प्रसाद शर्मा |
माता का नाम (Mother’s Name) | कौशल्या देवी शर्मा |
पत्नी (Wife Name) | रामबेटी शर्मा |
बेटे (Son’s) | अनेग सिंह शर्मा, धर्म नारायण शर्मा |
बेटी (Doughter) | गिरिजा शर्मा |
नीम करोली बाबा नाम कैसे पड़ा
बहुत पुरानी बात है एक युवा योगी लक्ष्मणदास अपनी मस्ती में हाथ में चिमटा और कमांडर लिए फर्रुखाबाद से टूंडला जा रही रेलगाड़ी के पहली क्लास के डिब्बे में चढ़ गए योगी अपनी ही मस्ती में खोया हुआ था गाड़ी में कुछ देर बाद एक टिकट निरीक्षक वहां आया।
निरीक्षक ने और योगी को देखा योगी ने बहुत कम कपड़े पहने हुए थे अस्त-व्यस्त भागते निरीक्षक को पता चला कि योगी के पास टिकट नहीं है तो क्रोधित होकर निरीक्षक योगी को उल्टा सीधा कहने लगा किन्तु योगी अपनी मस्ती में धन था इसलिए वह चुपचाप रहा।
कुछ देर बाद गाड़ी नीमकरोरी गांव के एक छोटे स्टेशन पर रुकी टिकट निरीक्षक ने योगी को अपमानित करते हुए उतार दिया तो योगी ने वही अपना चिंमटा गाड दिया और शांत भाव से बैठ गया,फिर जब गार्ड ने हरी झंडी हिलाई तो गाड़ी आगे नहीं बढ़ी और तो पूरी भाप देने पर पहिए अपने ही स्थान पर ही घूमने लगे किन्तु रेलगाड़ी के इंजन की जांच कराई गई तो वह एकदम ठीक था।
अब तो चालक कार्ड और टिकट निरीक्षक के माथे पर पसीना आ गया कुछ यात्रियों ने टिकट निरीक्षक को सलाह दी कि बाबा को चढ़ा लो तब शायद गाड़ी चल पड़े निरीक्षक मरता क्या न करता उसने बाबा से क्षमा मांगी और गाड़ी में बैठने का अनुरोध किया बाबा भोले चलो तुम कहते हो तो बैठ जाते हैं उनके बैठते ही गाड़ी चल पड़ी इस घटना की वजह से वही योगी और नीम करोली गांव प्रसिद्ध हो गया।
कुछ समय बाद रेलवे डिपार्टमेंट ने उस गांव में एक स्टेशन बनाया। उस घटना के बाद बाबा कई साल तक उस गांव में रहे ,तभी से लोग होने नीमकरोरी वाले बाबा या नीम करोली बाबा के नाम से पुकारने लगे।
नीम करोली बाबा के द्वारा कैंची धाम की स्थापना (neem karoli baba kainchi dham)
1942 में जब नीम करोली बाबा उत्तराखंड में भवाली से कुछ दूर एक छोटी सी घाटी के पास बैठे होते हैं तभी उन्हें पहाड़ी पर एक व्यक्ति दिखाई पड़ता है बाबा उसका नाम लेकर पुकारते हैं। जब व्यक्ति( जिसका नाम पूरन था) उनके पास आता है तो बाबा कहते हैं कि मुझे भूख लगी है घर से कुछ खाना लाकर दो, तो वह व्यक्ति अचंभित होता है कि मैं इन बाबा से पहली बार मिल रहा हूं फिर यह मुझे नाम से कैसे जानते हैं इस पर वह अपनी जिज्ञासा बाबा के सामने रखता है बाबा कहते हैं मैं तुम्हें कई जन्मों से जानता हूं, वह व्यक्ति घर में सभी को बाबा के बारे में बताता है फिर घर में मौजूद दाल और रोटी लेकर बाबा के पास वापस आता है।
बाबा भोजन ग्रहण करते हैं और फिर पूरन से कहते हैं जाओ और कुछ गांव वालों को बुला लाओ पूरन बाबा के कहे अनुसार कुछ गांव वालों को बुला जाता है और फिर बाबा कुछ गांव वालों के साथ नदी पार करके दूसरी और जंगल में जाते हैं फिर एक स्थान पर रुक कर कहते हैं यह जो पत्थर है ऐसे खोदकर हटाओ इसके पीछे गुफा है।
इस पर पूरा नाम और गांव वाले सोचते हैं हमने तो सारा जीवन यहां बिताया है लेकिन हमें कभी यहां किसी गुफा का आभास नहीं हुआ यह बाहर से आए बाबा इनको इस जगह के बारे में कैसे पता, फिर भी बाबा के कहने पर खुदाई कर वहां से पत्थर हटाया जाता है तो वहां एक गुफा मिलती है बाबा बताते हैं कि गुफा में एक हवन कुंड है सभी अंदर जाते हैं तो पाते हैं कि बाबा के अनुसार बताए अनुसार सभी को जस का तस मिलता है।
इस पर बाबा बताते हैं कि यह कोई चमत्कार नहीं है बल्कि यह स्थान हनुमान जी का है। भैरव सर स्थान को नदी के जल से शुद्धिकरण करते हैं फिर वहां पर हनुमान जी को स्थापित किया जाता है तब आप बताते हैं कि यह स्थान सोमवारी बाबा की तपोस्थली है फिर वहां हनुमान जी की स्थापना के साथ ही बाबा का आना जाना लगा रहता है।
1962 में वहां कैंची धाम की स्थापना की जाती है उस वक्त चौधरी चरण सिंह वन मंत्री थे, वह बाबा को कैंची धाम के निर्माण के लिए जगह मुहैया कराते हैं जिस पर बाबा खुश होकर आशीर्वाद देते हैं कि वह एक दिन की भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे जबकि चौधरी चरण सिंह की दूर-दूर तक प्रधानमंत्री बनने की कोई संभावना नहीं होती। यह स्थान को देश ही नहीं वरन विदेशों तक में ख्याति प्राप्त है यह वही में वही स्थान है जिसे आज हम कैंची धाम के नाम से जानते हैं आज यहां देसी और विदेशी श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
नीम करोली बाबा और मिरेकल ऑफ लव
यूं तो बाबाजी से जुड़े सभी भक्तों के अनेक सुखद अनुभव है परंतु सभी का ज़िक्र यहां संभव नहीं है इनमें से एक सुखद अनुभव एक किस्से का जिक्र बाबा जी के भक्त रामदास रिचर्ड अल्बर्ट ने अपनी पुस्तक मेडिकल ऑफ लव में किया जिसके बाद बाबा को वर्ष 1960 के दशक में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोग जानने लगे अपनी किताब में रिचर्ड ने “बुलेटप्रूफ कंबल” नाम से एक घटना का जिक्र किया है। जो इस प्रकार है–
बाबा के कई भक्तों में से एक बुजुर्ग दंपत्ति फतेहगढ़ में रहते थे एक रात बाबा नीम करोली उनके घर आए और बुजुर्ग दंपत्ति स कहा कि आज हुए उनके घर पर ही रुकेंगे बाबा सारी रात कास्ट से कराहते रहे जैसे कि उन्हें भारी कष्ट हो रहा हो सुबह बाबा ने बुजुर्ग दंपत्ति को एक चादर लपेट कर दी और बिना देखे नदी में प्रवाहित करने को कहा। बुजुर्ग दंपत्ति ने वैसा ही किया जाते हुए बाबा ने कहा कि चिंता मत करना महीने भर में आपका बेटा लौट आएगा।
लगभग 1 माह के बाद बुजुर्ग दंपत्ति का एकलौता पुत्र वर्मा प्रिंट से लौट आया वह ब्रिटिश फौज में सैनिक था और दूसरे विश्व युद्ध के वक्त वर्मा फ्रंट पर तैनात उसे देखकर दोनों बुजुर्ग दंपति खुश हो गए और उसने घर आकर कुछ ऐसी कहानी बताई जो कि किसी को समझ नहीं आई।
उसने बताया कि करीब महीने भर पहले एक दिन वह दुश्मन फौज के साथ गिर गया था। रात भर गोलीबारी हुई उसके सारे साथी मारे गए लेकिन वह अकेला बच गया। मैं कैसे बच गया यह मुझे पता नहीं उस गोलाबारी में उसे एक भी गोली नहीं लगी। रात भर वह जापानी दुश्मनों के बीच जिंदा बचा रहा सुबह तड़के जब टुकड़ी आई तो उसकी जान में जान आई यह वही रात थी जिस रात नीम करोली बाबा जी उस बुजुर्ग दंपत्ति के घर रुके थे।
नीम करोली बाबा के बारे में रोचक तथ्य
- मात्र 11 साल की उम्र में वह भटकते हुए साधु बन गए और बाद में अपने पिता के अनुरोध पर घर वापस लौट आए थे।
- आमतौर पर अपने आश्रम में एक लकड़ी की बेंच पर एक कंबल में लिपटे रहते थे।
- दूसरी दुनिया में लीन वह कभी-कभी पूर्ण मौन में प्रवेश कर जाते थे।
- वह हमेशा ही अपने आसपास बैठे भक्तों पर आनंद और शांति की वर्षा करते रहते थे।
- 1960 और 1970 के दशक के दौरान भी उनकी लोकप्रियता विदेशों तक फैल गई थी।
- उनके शिष्यों के अनुसार बाबा जी इस भौतिक संसार से पूरी तरह अलग हो गए थे।
- उनकी समाधि उनके वृंदावन आश्रम में स्थित है।
- करोली बाबा की शिक्षाओं को संरक्षित और जारी रखने के लिए ‘लव सर्व रिमेंबर फाउंडेशन’ की स्थापना की गई है।
- उनके शिष्यों का मानना है कि वह एक सिद्ध पुरुष और त्रिकाल ज्ञानी थे।
FAQ:
नीम करोली बाबा हनुमान थे?
नीम करोली बाबा: भगवान हनुमान का एक भारतीय अवतार– एक भक्ति पुस्तक उन लोगों के लिए जिनका जीवन अर्थहीन हो गया है।
मुझे कैची धाम कब जाना चाहिए?
कैंची धाम के प्रसिद्ध मंदिर में जाने का सबसे अच्छा समय गर्मी के मौसम में है।
नीम करोली बाबा की प्रार्थना कैसे करें?
बाबा सब की छमता को जानते हैं यह संदर्भ हमें बाबा नीम करोली एक बार बोले मस्तिष्क की सीमा होती है तुम शरीरस्थ हो! यह चीजें धीरे-धीरे प्राप्त करने की है ऐसा करना करने से पागल भी हो सकते हैं।
नीम करोली गांव कहां है?
उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में खिमासेपुर के पास नीम करोली गांव है।
कैंची धाम में अभी कौन गए थे?
आश्रम में बहुत सारे विदेशी आते हैं आध्यात्मिक नेता मां जया, रामदास, संगीतकार जय उत्तल, और कृष्णदास मानवतावादी लैरी ब्रिलियंट, विद्वान और लेखक यवेटे रोसेर और डैनियल गोलेमैन उनके भक्तों में से हैं।
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निष्कर्ष
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