Meerabai Biography In Hindi: इस आर्टिकल में हम भगवान श्री कृष्ण की सबसे बड़ी भक्त मीराबाई की संपूर्ण जीवनी को एकदम विस्तार से देखने वाले हैं यदि आप मीराबाई की जीवन जीवन के बारे में खोज रहे हैं तो, आपकी खोज समाप्त होती है, क्योंकि यहां पर हमने Meerabai Biography In Hindi बिल्कुल विस्तार से शेयर किया है।
मीराबाई का जीवन परिचय (NCERT)
नाम (Name) | मीराबाई |
जन्म (Birthday) | सन् 1498 ईस्वी |
जन्म स्थान (Birth Place) | कुडकी, राजस्थान (भारत) |
मृत्यु वर्ष (Death Year) | सन् 1547 ईस्वी |
मृत्यु स्थान (Death Place) | द्वारका, गुजरात (भारत) |
आयु (मृत्यु के समय ) (Age) | 48–49 वर्ष |
राष्ट्रीयता (Nationalty) | भारतीय |
धर्म (Religien) | हिंदू |
भाषा (Language) | ब्रजभषा |
जयंती (Jubilee) | शरद पूर्णिमा |
वैवाहिक स्थिति (Marital Status) | विवाहित |
गुरु (Teacher) | संत रैदास (रविदास) |
उपाधि (Tital) | मरुस्थल की मंदाकिनी (सुमित्रानंदन पंत) |
लोकप्रिय रचना (Famous Creation) | नरसी जी का मायरा |
मीराबाई का जन्म एवं शुरुआती जीवन
जोधपुर के संस्थापक राव जोधा जी की पुत्री जोधपुर नरेश राजा रतन सिंह की पुत्री और भगवान कृष्ण के प्रेम में दीवानी मीरा बाई का जन्म राजस्थान के कुकड़ी नामक ग्राम में सन 1498 ईस्वी में हुआ था। बचपन में ही माता का निधन हो जाने के कारण जाए अपने पिता में राव दूदा जी के पास रहती थी और प्रारंभिक शिक्षा भी उन्हीं के पास रहकर प्राप्त की।
राव दूदा जी बड़े ही धार्मिक एवं उधार प्रवृत्ति के थे जिनका प्रभाव मीरा के जीवन पर पूर्णरूप से पड़ा । मात्र 8 वर्ष की मीरा ने कब श्री कृष्ण की को पति रूप में स्वीकार कर लिया यह बात कोई नहीं जान सका।
इनका विवाह चित्तौड़ के महाराजा राणा सांगा के जेष्ठ पुत्र भोजराज के साथ हुआ था। विवाह के कुछ वर्ष बाद ही मीरा विधवा हो गई, अब तो इनका सारा समय श्री कृष्ण भक्ति में ही बीतने लगा। मीरा श्री–कृष्ण को अपना प्रियतमा मानकर उनके विरह में पद गातीं और साधु-संतों के साथ कीर्तन एवं नृत्य करती थी।
मीराबाई का परिवार (Meerabai Family)
पिता का नाम (Father’s Name) | रतन सिंह राठौर |
माता का नाम (Mother’s Name) | वीर कुमारी |
पति का नाम (Husband Name) | राणा भोजराज सिंह |
पुत्र (Son) | ज्ञात नहीं है |
पुत्री (Doughter) | ज्ञात नहीं है |
दादा जी (Grand father) | राव दूदा |
मीराबाई की रचनाएं
मीरा की रचनाओं में इनके हृदय की विव्हलता देखने को मिलती है इनके नाम के सात–आठ रचनाओं के उल्लेख मिलते हैं, जिनमें से कुछ–नरसी जी का मायरा, रा–गोविंद, गोविंद टीका, राग सोरठा, मीरा की मल्हार, गीत गोविंद, फुटकर पद आदि है। मीराबाई की प्रसिद्धि का आधार “मीरा पदावली” नाम की एक महत्वपूर्ण कृति है।
भाव पक्ष
मीरा ने गोपियों की तरह कष्टों को अपना पति माना और उनकी उपासना माधुर्य भाव की भक्ति पद्धति से की है मीणा का जीवन कृष्ण माता और सदैव कृष्ण भक्ति में लीन रहती थी। मीरा ने– “मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरा न कोई। जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।।” कहकर पूरे समर्पण के साथ भक्ति की।
मीरा के काव्य में विरह की तीव्र मार्मिकता पाई जाती है विनय एवं भक्ति संबंधी पत्र भी पाए जाते हैं मीरा के काव्य में श्रृंगार तथा शांत रस की धारा प्रवाहित होती है।
कला पक्ष
मीरा कृष्ण भक्ति काव्य रचना उनका लक्ष्य नहीं था, इसलिए मीरा का कला पक्ष अनगढ है। साहित्यिक ब्रजभाषा होते हुए भी उनकी रचनाओं पर राजस्थानी, गुजराती भाषा का विशेष प्रभाव मीरा ने गीत काव्य की रचना की और पद शैली को अपनाया। मीरा के सभी पद के और राग में बधे हुए हैं।
मीराबाई ने अपने पदों में श्रृंगार के दोनों पक्षों का चित्रण किया है। मीराबाई की रचनाओं में रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग मिलता है किंतु सरलता और सहजता ही मीरा के काव्य का विशेष गुण हैं।
भाषा शैली/ काव्य शैली
मीराबाई के काव्य में उनके हृदय की सरलता, तरलता तथा निश्छलता का स्पष्ट रूप प्रकट होता है। मीराबाई ने गीत काव्य की रचना की तथा उन्होंने कृष्ण भक्त कवियों की परंपरागत पद शैली को अपनाया उनके गीतों में उनकी आवेश पूर्ण आत्माभिव्यक्ति मिलती है।
मीरा की काव्य भाषा शुद्ध साहित्यिक ब्रजभाषा के निकट है तथा उस पर राजस्थानी, गुजराती, पश्चिमी, हिंदी और पंजाबी शब्दों का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है उनकी काव्य भाषा अत्यंत मधुर, सरल और प्रभावपूर्ण है।
मीराबाई का साहित्यिक परिचय
मीराबाई सगुण भक्ति धारा की महान आध्यात्मिक कवियत्री है उन्होंने श्री कृष्ण के प्रेम रस में डूब कर कई कविताओं, पदों एवं छंदों की रचना की, मीराबाई जी की रचनाओं में उनका श्री कृष्ण के प्रति अटूट प्रेम, श्रद्धा, तल्लीनता सहजता एवं आत्मसमर्पण का भाव साफ झलकता है।
मीराबाई ने अपनी रचना है राजस्थानी ब्राउज़र और गुजराती भाषा शैली में की है। सच्चे प्रेम से परिपूर्ण मीरा बाई जी की रचनाओं एवं उनके भजनों को लोग आज भी पूरे तन्मयता से गाते हैं। मीराबाई ने अपनी रचनाओं में बेहद शानदार तरीके से अलंकारों का इस्तेमाल किया है।
मीराबाई ने बेहद सरलता और सहजता के साथ अपनी रचनाओं में अपने प्रभु श्री कृष्ण के प्रति प्रेम का वर्णन किया है। इसके साथ ही उन्होंने प्रेम पीड़ा को भी व्यक्त किया है। मीराबाई की रचनाओं में श्रीकृष्ण के प्रति उनके हृदय में भरा अपार प्रेम देखने को मिलता है।
मीराबाई का विवाह
मीराबाई का विवाह 1516 ई. में मेवाड़ के महाराणा सांगा के जेष्ठ पुत्र भोजराज सिंह के साथ हुआ था। भोजराज उस समय मेवाड़ के युवराज थे।
विवाह के एक से दो सालों बाद 1518 ईस्वी में भोजराज को दिल्ली सल्तनत के खिलाफ युद्ध में जाना पड़ा। 1521 में महाराणा सांगा वा मुगल शासक बाबर के बीच युद्ध हुआ इस युद्ध में राणा सांगा की हार हुई जिसे खानवा के युद्ध के नाम से जाना जाता है। खानवा के युद्ध में राणा सांगा व उनके पुत्र भोजराज की मृत्यु हो गई।
अपने पति भोजराज की मृत्यु के बाद मीराबाई अकेली पड़ गई एवं पति के शहीद होने के बाद वह भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में डूब गई।
मीराबाई की जयंती
भगवान श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी प्रेमिका और भक्त कवयित्री मीरा ने न केवल संपूर्ण जीवन में कृष्ण की रट लगाए रखी, बल्कि अपने शरीर का समापन भी कृष्ण की मूर्ति में समाकर किया। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक शरद पूर्णिमा के दिन मीरा जी की जयंती मनाई जाती है।
उनके भजनों और पदों में भक्ति की पराकाष्ठा और निश्छल प्रेम के भाव को महसूस किया जा सकता है। कई हिंदी मूवीस में इनके भक्ति गीतों व पदों का प्रयोग किया गया है। प्रभु के प्रति सच्ची चाह से भक्ति की जाए तो एक दिन उन्हें पाया जा सकता है। यह मीरा के जीवन से हमें सीखने को मिलता है।
मीराबाई पर 10 लाइन (Meerabai 10 Lines in Hindi)
- मीराबाई की जयंती हर साल अक्टूबर माह में अश्वनी मास की शरद पूर्णिमा को मनाई जाती है।
- मीराबाई का जन्म 1503 ईस्वी में मेवाड़ के राजघराने में हुआ था।
- मीराबाई अपने माता पता की इकलौती संतान थी।
- मीराबाई के पिता का नाम रतन सिंह था।
- मीराबाई बचपन से ही श्री कृष्ण की भक्त थी।
- मीराबाई का विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ था।
- मीराबाई के पति का नाम भोजराज का जो मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र थे।
- मीराबाई के पति की मृत्यु विवाह के कुछ समय पश्चात ही हो गई थी।
- मीराबाई के धार्मिक गुरु का नाम संत रविदास था।
- ऐसा माना जाता है कि मीराबाई शरीर सहित भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा में समा गई थी।
मीराबाई के पद
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।।
तात मात भ्रात बंधू आपनो न कोई।
छाड़ी दई कुल की कानी कहा करिहें कोई।।
FAQ:
मीराबाई का जन्म कब और कहॉं हुआ था?
मीरा बाई का जन्म राजस्थान के कुकड़ी नामक ग्राम में सन 1498 ईस्वी में हुआ था।
मीराबाई की मृत्यु कब और कैसे हुई?
मीराबाई की मृत्यु सन् 1546 ई. में रणछोड़ मंदिर, द्धारका, गुजरात में हुई थी।
मीरा किसका अवतार थी?
कहते हैं कि मीराबाई द्धापर युग में भगवान श्रीकृष्ण की ललिता नामक साखी थी जो इस कलयुग में परम कृष्णभक्त के रूप में राणा सांगा के घर में अवतरित हुई।
मीराबाई का बचपन का नाम क्या है
मीराबाई के बचपन का नाम पेमल था।
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निष्कर्ष
मैं आशा करता हूं की आपको “मीराबाई का जीवन परिचय | Meerabai Biography In Hindi” पसंद आया होगा। अगर आपको यह पोस्ट पसंद आया है तो कमेंट करके अपनी राय दे, और इसे अपने दोस्तो और सोशल मीडिया में भी शेयर करे।