बाबू वीर कुंवर सिंह का जीवन परिचय | Babu Veer Kunwar Singh biography in Hindi

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भारत में अंग्रेजों का शासन स्थापित होने के बाद अंग्रेजों द्वारा लगाई गई नीतियों और नियमों के कारण पूरे भारतीय जनमानस में एक आक्रोश की भावना जन्म ले रही थी।

और यही कारण था कि वर्ष 1857 में भारत के सभी वर्गों ने पहली बार एक साथ संगठित होकर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अपने हक के लिए आवाज उठाई जिसे आगे चलकर प्रथम भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का नाम दिया गया।

1857 के उन्हें क्रांतिकारी वीरों में एक थे वीर कुंवर सिंह और उन्होंने जिस प्रकार 80 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अदम्य साहस का परिचय दिया वह अतुलनीय है।

तो दोस्तों आज के अपने लेख बाबू वीर कुंवर सिंह का जीवन परिचय (Babu Veer Kunwar Singh Biography In Hindi) में हम आप को उनके बारे में बहुत सी जानकारियां देंगे तो, आइए जानते हैं उनके बारे में-

बाबू वीर कुंवर सिंह का जीवन परिचय | Babu Veer Kunwar Singh biography in Hindi

बाबू वीर कुंवर सिंह का जीवन परिचय

नाम (Name)बाबू वीर कुंवर सिंह
जन्म (Date Of Birth)11 नवंबर 1777
जन्म स्थान (Birth Place)भोजपुर, बिहार
राशि (Zodiac Sine)ज्ञात नहीं
धर्म (Religion)हिंदू
उम्र (Age)81 वर्ष मृत्यु के समय
जाति (Cast)राजपूत
पेशा (Profession)भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और महानायक
प्रसिद्ध (Famous for)1857 की क्रांति में योगदान के लिए
मृत्यु (Death)26 अप्रैल 1818

बाबू वीर कुंवर सिंह कौन थे? (Who Is Babu Veer Kunwar Singh?)

बिहार के भोजपुर जिले में जन्मे वीर कुंवर सिंह जिन्हें ‘बाबू साहब’ के नाम से जाना जाता था। वह 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही, महानायक एवं एक कुशल सेनानायक थे जो 80 वर्ष की उम्र में भी लड़ने तथा विजय हासिल करने के लिए जाने जाते हैं।

वीर कुंवर सिंह का जन्म एवं शुरुआती जीवन

बाबू वीर कुंवर सिंह का इतिहास

1857 की क्रांति के महान योद्धा बाबू वीर कुंवर सिंह का जन्म 11 नवंबर 1777 को बिहार राज्य के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव में एक राजपूत परिवार में हुआ था।

उनके पिता का नाम बाबू साहबजादा सिंह था जोकि भोजपुर जिले के उज्जैनिया राजपूत वंश रियासतदार शासक थे और उनकी माताजी का नाम महारानी पंचरतन था जो कि एक कुशल ग्रहणी थी।

उनके दो भाई हरे कृष्णा और अमर सिंह भी थे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में उनका साथ दिया था इसके अलावा उनके परिवार के गजराज सिंह, उमराव सिंह और बाबू उदवंत सिंह ने भी भारत की पहली आजादी की लड़ाई में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

एक राजपूत राजघराने में पैदा होने की वजह से बाबू कुंवर सिंह के पास एक जागीर थी और वह एक जाने-माने जमींदार थे हालांकि उनकी जागीर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की दमनकारी नीतियों के चलते छीन ली गई थी जिनसे उनके मन में अंग्रेजो के खिलाफ रोष उत्पन्न हो गया था।

इसके साथ ही वीर कुंवर सिंह के अंदर बचपन से ही देश को आजाद कराने की भावना प्रज्वलित हो रही थी और यही वजह था कि उनका मन शुरू से ही संयुक्त कामों में बहुत डरता था और 1826 में पिता की मृत्यु के बाद उन्हें जगदीशपुर के तालुकदार के रूप में नियुक्त किया गया था और उनके भाइयों को उनके सिपहसालार बनाया गया था।

बाबू वीर कुंवर सिंह का परिवार (Babu Veer Kunwar Singh Family)

पिता का नाम (Father’s Name)बाबू साहबजादा सिंह
माता का नाम (Mother’s Name)महारानी पंचरतन
बहन का नाम (Sister’s Name)ज्ञात नहीं
भाई का नाम (Brother’s Name)हरे कृष्णा
अमर सिंह
पत्नी का नाम (Wife’s Name)ज्ञात नहीं
बेटी का नाम (Daughter’s Name)ज्ञात नहीं
बेटे का नाम (Son’s Name)ज्ञात नहीं

बाबू वीर कुंवर सिंह का विवाह (Babu Veer Kunwar Singh Marriage)

एक संपन्न परिवार में पैदा होने की वजह से बाबू वीर कुंवर सिंह का विवाद सिसोदिया राजपूताना शासक फतेह नारायण की पुत्री के साथ हुआ था। जो कि बिहार के एक बहुत बड़े जमींदार एवं महाराणा प्रताप के वंशज थे।

बाबू वीर कुंवर सिंह का 1857 की क्रांति में योगदान

एक तरफ जहां 1848-49 में अंग्रेजी शासकों की विलय नीति से बड़े-बड़े शासकों के अंदर डर उत्पन्न हो रहा था तो वहीं दूसरी तरफ कुंवर सिंह अंग्रेजो के खिलाफ भड़क उठे।

इसके साथ ही उस समय भारत के हर एक वर्ग के अंदर अंग्रेजो के खिलाफ रोष उत्पन्न हो रहा था क्योंकि ब्रिटिश शासकों की दमनकारी एवं शोषक नीतियों से समाज का हर वर्ग पीड़ित था।

इसके बाद 1857 का वह समय आया जब प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बज उठा तब 80 वर्ष की आयु में भी जब अक्सर लोग आराम दे जीवन व्यतीत करना चाहते हैं उस समय वीर कुंवर सिंह जी ने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला करने की ढाण।

उनके दिल में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी उन्होंने तुरंत ही अपनी पूरी शक्ति को एकजुट किया और अंग्रेजी सेना के खिलाफ मोर्चा संभाला, उन्होंने अपने सैनिकों और साथियों के साथ मिलकर सबसे पहले आरानगर से अंग्रेजी आधिपत्य को समाप्त किया।

आजादी पाने के लिए एक तरफ जहां नाना साहब, तात्या टोपे, महारानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल जैसे महान शूरवीर अपने-अपने क्षेत्रों में अंग्रेजों से युद्ध कर रहे थे वहीं दूसरी ओर वीर कुंवर सिंह ब्रिटिश शासकों के खिलाफ बिहार के दानापुर में क्रांतिकारियों का नेतृत्व कर अपनी कुशल सैन्य क्षमताओं का परिचय दिया।

इस दौरान बाबू वीर कुंवर सिंह ने अपने अदम्य साहस, पराक्रम, कुशल सैन्य शक्ति और एक कुशल नेतृत्व का परिचय दिया जिसके सामने ब्रिटिश सरकार को घुटने टेकने के लिए मजबूर होना पड़ा।

बाबू वीर कुंवर सिंह द्वारा मस्जिद का निर्माण

दरअसल उन दिनों मुजरा काफी प्रसिद्ध हुआ करता था और वीर कुंवर सिंह भी मुजरा देखने के बहुत शौकीन थे और वह धरमन बारी का मुजरा देखने जाया करते थे।

इतिहास की माने तो इन दोनों का प्यार उसी मुजरा के दौरान शुरू हुआ था और बाद में उन्होंने आपस में शादी कर ली थी।

दोस्तों आपको बता दें कि धरमन बाई और करमन बाई दोनों बहने हुआ करती थी जो कि बिहार के एक छोटे से शहर जगदीशपुर के एक नुक्कड़ में मुजरे का कार्यक्रम किया करती थी।

वीर कुंवर सिंह उनके प्रेम में इतना पागल हो गए कि उन्होंने करमन बाई के नाम पर एक टोला बसा डाला जो कि आज भी बिहार के जगदीशपुर में उपस्थित है

तो वहीं वह धरमन बाई से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने उनके नाम पर धरमन चौक का निर्माण करवाया तथा उन्हीं के नाम पर एक मस्जिद भी बनवा दी जो कि आज भी जगदीशपुर के उस गांव में उपस्थित है।

बाबू वीर कुंवर सिंह का जीवन परिचय | Babu Veer Kunwar Singh biography in Hindi
Image Credit – Google

वीर कुंवर सिंह की मृत्यु (Babu Veer Kunwar Singh Death)

युद्ध नीति तथा रणनीति में माहिर बाबू वीर कुंवर सिंह अंग्रेजों के कट्टर दुश्मन बन चुके थे और ब्रिटिश शासन का एक सिपाही डग्लस कुंवर सिंह के पीछे हाथ धोकर पड़ा हुआ था।

इसके बाद डग्लस को 23 अप्रैल 1858 के दिन यह सूचना मिली कि कुंवर सिंह अपने कुछ साथियों के साथ गंगा नदी को पार कर रहे हैं तो डग्लस तुरंत ही अपनी सेना लेकर गंगा नदी के पास पहुंच गया।

हालांकि कुंवर सिंह के सभी साथी साथ गंगा नदी को पार कर चुके थे और केवल कुंंवर सिंह की कश्ती बची थी जिसमें कुंवर सिंह तथा उनके कुछ साथी सवार थे।

डग्लस ने बिना देर किए उस करती पर अंधाधुंध फायरिंग करवा दी जिससे एक गोली वीर कुंवर सिंह की बाह में जा लगी जसपाल वीर कुंवर सिंह ने एक और गंगा की तरफ रुख किया और तलवार की धार से जिस बांह में गोली लगी थी

उसे काटकर गंगा नदी को समर्पित कर दिया क्योंकि उन्हें पता था कि यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया तो गोली का शहर पूरे शरीर में फैल जाएगा इसी कारण उन्होंने ऐसा किया था।

गोली लगने तथा हाथ कटने के पश्चात में कुंवर सिंह अपने महल वापस लौट आए थे परंतु वह मात्र तीन दिन ही बिता सकें इसके पश्चात उन्होंने 26 अप्रैल 1818 को अपना शरीर त्याग कर पंचतत्व में विलीन हो गए।

बाबू वीर कुंवर सिंह से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण रोचक तथ्य-

  • उनका जन्म बिहार राज्य के जगदीशपुर में एक राजपूत राजघराने में हुआ था।
  • उनके पिता का नाम बाबू साहबजादा सिंह था जोकि राजा भोज के वंशज थे।
  • उन्होंने अपनी 80 वर्ष की उम्र में 1857 की क्रांति में भाग लिया था।
  • वह बचपन से ही अंग्रेजो के खिलाफ थे और भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद करवाना चाहते थे।
  • उन्हें साल 1857 के महासंग्राम का सबसे बड़ा योद्धा कहा जाता है।
  • 80 वर्ष की उम्र के दौरान भी उन्होंने जिस पराक्रम और कुशल नेतृत्व को दर्शाया था उसके सामने ब्रिटिश सरकार को भी पीछे हटना पड़ा था।
  • अगर वह जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता है।
  • उन्होंने 23 अप्रैल 1858 को जगदीशपुर के पास गंगा के किनारे अपनी अंतिम लड़ाई लड़ी थी।
  • इस युद्ध के दौरान उनके हाथ में एक गोली लग गई थी जिसके कारण उन्होंने अपने हाथ काट कर गंगा मां को समर्पित कर दिया था।
  • बुरी तरह घायल होने के बाद भी उन्होंने जगदीशपुर केले से यूनियन जैक नाम का झंडा उतार कर ही दम लिया था।

FAQ:

वीर कुंवर सिंह का जन्म कब और कहां हुआ?

1857 की क्रांति के महान योद्धा बाबू वीर कुंवर सिंह का जन्म 11 नवंबर 1777 को बिहार राज्य के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव में एक राजपूत परिवार में हुआ था।

वीर कुंवर सिंह की मृत्यु कब और कैसे हुई?

गोली लगने तथा हाथ कटने के पश्चात में कुंवर सिंह अपने महल वापस लौट आए थे परंतु वह मात्र तीन दिन ही बिता सकें इसके पश्चात उन्होंने 26 अप्रैल 1818 को अपना शरीर त्याग कर पंचतत्व में विलीन हो गए।

वीर कुंवर सिंह के माता पिता का नाम क्या था?

उनके पिता का नाम बाबू साहबजादा सिंह था जोकि भोजपुर जिले के उज्जैनिया राजपूत वंश रियासतदार शासक थे और उनकी माताजी का नाम महारानी पंचरतन था जो कि एक कुशल ग्रहणी थी।

वीर कुंवर सिंह कौन थे?

बिहार के भोजपुर जिले में जन्मे वीर कुंवर सिंह जिन्हें ‘बाबू साहब’ के नाम से जाना जाता था। वह 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही, महानायक एवं एक कुशल सेनानायक थे जो 80 वर्ष की उम्र में भी लड़ने तथा विजय हासिल करने के लिए जाने जाते हैं।

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निष्‍कर्ष

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