मुंशी प्रेमचंद्र का जीवन परिचय | Munshi Premchand Biography In Hindi

मुंशी प्रेमचंद्र का जीवन परिचय, जीवनी, जन्म, शिक्षा, परिवार, कहानियां, उपन्यास, नाटक, मृत्यु (Munshi Premchand Biography In Hindi, Wiki, Family, Education, Birthday, Stories, Nobels, Drama, Death, Achievement, Awards, Wife, Children, First Wife, Second Wife, Marriage)

दोस्तों आप इतना तो मानते होंगे कि हिंदी एक बहुत ही खूबसूरत भाषा और एक ऐसा विषय है जो हर किसी को अपना लेती है।

हिंदी एक ऐसी भावनात्मक भाषा है जो सरल और कठिन दोनों बन सकती है, हिंदी को हर दिन एक नया रूप, नई पहचान देने वाले उसके साहित्यकार और उसके लेखक है।

उन्हें साहित्यकारों में एक महान छवि थी मुंशी प्रेमचंद्र की जो एक ऐसी प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी थे जिन्होंने हिंदी विषय की काया ही पलट दी और समय के साथ अपने लेखन में परिवर्तन को सम्मिलित करके हिंदी साहित्य को एक आधुनिक रूप प्रदान किया।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी मुंशी प्रेमचंद्र जी ने जीवन में बड़ी कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए हिंदी जैसे खूबसूरत विषय को सहज साहित्य प्रदान करते हुए अपनी एक अमिट छाप छोड़ी है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।

तो दोस्तों आज की अपनी लेख मुंशी प्रेमचंद्र का जीवन परिचय (Munshi Premchand Biography In Hindi) में हम आपको उनके बारे में बहुत सी जानकारियां देंगे तो आइए जानते हैं उनके बारे में-

मुंशी प्रेमचंद्र का जीवन परिचय | Munshi Premchand Biography In Hindi

मुंशी प्रेमचंद्र का जीवन परिचय

नाम (Name)मुंशी प्रेमचंद
उपनाम (Nick Name)कलम का सिपाही, नवाब राय
बचपन का नाम (Childhood Name)धनपत राय श्रीवास्तव
जन्म (Date Of Birth)31 जुलाई 1880
जन्म स्थान (Birth Place)लमही, वाराणसी उत्तर- प्रदेश
राशि (Zodiac Sine)ज्ञात नहीं
धर्म (Religion)हिंदू
उम्र (Age)56 वर्ष मृत्यु के समय
नागरिकता (Nationality)भारतीय
गृह नगर (Home Town)लमही, वाराणसी उत्तर- प्रदेश
जाति (Cast)ज्ञात नहीं
शैक्षिक योग्यता (Education)मैट्रिक
पेशा (Profession)अध्यापक, लेखक और पत्रकार
प्रमुख कृतियां (Famous Creations)गोदान
कर्मभूमि
रंगभूमि
सेवा सदन
निर्मला
मानसरोवर
अवधि काल (Work Time)आधुनिक काल
मृत्यु (Death)8 अक्टूबर 1936
मृत्यु का स्थान (Death Place)वाराणसी, उत्तर प्रदेश

मुंशी प्रेमचंद्र कौन है? (Who Is Munshi Premchand?)

31 जुलाई 1980 को भारतवर्ष की पवित्र भूमि में स्थित भारत की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में जाने जाने वाले शहर वाराणसी में जन्मे मुंशी प्रेमचंद एक अध्यापक, लेखक, पत्रकार थे। प्रेमचंद्र जी ने अपनी बहुमुखी प्रतिभा का प्रयोग करते हुए हिंदी साहित्य को एक नया आकार प्रदान किया है।

मुंशी प्रेमचंद का जन्म एवं शुरुआती जीवन-

मुंशी मुंशी प्रेमचंद्र का जन्म 31 जुलाई 1980 को उत्तर प्रदेश कि वाराणसी में हुआ था उनके पिता का नाम अजायब राय था जो कि एक पोस्ट मास्टर थे।

मुंशी प्रेमचंद्र का कुल दरिद्र कायस्थों का था और उनके पास करीब 6 बीघे जमीन थी उनके दादा मुंशी गुरुसहाय एक पटवारी थे।

उनकी माता जी का नाम आनंदी देवी था जो कि एक सुंदर सुशील और गृहस्थ महिला थी और जब वह कक्षा आठवीं में पढ़ रहे थे तब उनकी माताजी का एक गंभीर बीमारी से उनकी मां का स्वर्गवास हो गया।

उनकी मां के स्वर्गवास के लगभग 2 वर्षों के बाद उनके पिता ने फिर से विवाह किया परंतु वह कभी अपनी सौतेली मां से प्यार और स्नेह प्राप्त नहीं कर सके।

उनके परिवार में उनके माता-पिता के अलावा उनकी एक बहन थी जिनका नाम सुग्गी राय था।

मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा (Munshi Premchand Education)

प्रेमचंद्र जी को बचपन से यही पढ़ने का बहुत शौक था परंतु गरीबी से लड़ते हुए वह अपनी शिक्षा को मैट्रिक तक पहुंचा पाए।

जीवन के आरंभ में ही उन्हें गांव से दूर वाराणसी पढ़ने के लिए नंगे पैर जाना पड़ता था और इसी बीच उनके पिता का देहांत हो गया, जिसके बाद एक वकील बनने का सपना देखने वाले बच्चे को गरीबी ने तोड़ कर रख दिया।

फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और स्कूल आने-जाने के झंझट से बचने के लिए एक वकील साहब के यहां ट्यूशन पढ़ने लगे और उन्हीं के घर में एक कमरा लेकर रहने लगे और साथ ही में बच्चों को पढ़ाते भी थे।

उन्हें ट्यूशन का ₹5 मिलता था जिसमें से ₹3 वह घर वालों को देते थे और ₹2 से आर्थिक तंगी और साधनो अभाव के साथ अपनी जिंदगी की गाड़ी को आगे बढ़ाते रहें।

जीवन की इन्हीं प्रतिकूल परिस्थितियों के साथ प्रेमचंद्र जी ने अपनी शिक्षा को मैट्रिक तक पहुंचाया और उसके बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य पार्सियल और इतिहास विषय में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

मुंशी प्रेमचंद्र का परिवार (Munshi Premchand Family)

पिता का नाम (Father’s Name)अजायब राय
माता का नाम (Mother’s Name)आनंदी देवी
सौतेली मां का नाम (Stape Mother’s Name)ज्ञात नहीं
बहन का नाम (Sister’s Name)सुग्गी राय
भाई का नाम (Brother’s Name)ज्ञात नहीं
पहली पत्नी का नाम (First Wife’s Name)ज्ञात नहीं
दूसरी पत्नी का नाम (Second Wife’s Name)शिवरानी देवी
बेटी का नाम (Daughter’s Name)कमला देवी
बेटे का नाम (Son’s Name)अमृत राय
श्रीपत राय

मुंशी प्रेमचंद्र का विवाह (Munshi Premchand Marriage, Wife, Children)

पहली पत्नी (Munshi Premchand First Wife)

एक तरफ जहां प्रेमचंद्र जी बचपन से किस्मत के साथ अपनी लड़ाई लड़ रहे थे और उन्हें कभी परिवार का लाड प्यार व सुख प्राप्त नहीं हुआ तो वहीं दूसरी ओर पुराने रीति-रिवाजों के चलते उनका बहुत ही कम उम्र में विवाह हो गया।

उनके पिताजी ने उनका यह विवाह पुराने रीति-रिवाजों के दबाव में आकर बिना उनकी मर्जी से केवल अमीर परिवार देख कर एक ऐसी कन्या के साथ करवा दिया जो कि स्वभाव से बहुत ही झगड़ालू प्रवृत्ति की थी।

इसकी थोड़े ही समय के बाद उनके पिताजी की मृत्यु हो गई और पूरा भार उनके ऊपर आ गया एक समय ऐसा आया कि उन्हें जरूरत के लिए अपनी बहुमूल्य वस्तुओं को बेच कर घर चलाना पड़ा।

एक तरफ जहां बहुत ही कम उम्र में गृहस्ती का पूरा बोल अकेले उनके कंधों पर था तो वहीं दूसरी और उनकी पत्नी से उनकी बिल्कुल भी नहीं बनती थी जिसके चलते उन्होंने उसे तलाक दे दिया।

दूसरी पत्नी (Munshi Premchand Second Wife)

अपनी पहली पत्नी को तलाक देने के कुछ समय पश्चात मुंशी प्रेमचंद जी ने दूसरा विवाह शिवरानी देवी के साथ हुआ जो कि लगभग 25 वर्ष की एक विधवा स्त्री थी।

उनका यह दूसरा विवाह बहुत ही संपन्न रहा और उनके जीवन में परिस्थितियों का भी कुछ बदलाव हुआ और उन्हें तरक्की मिलना शुरू हुई।

मुंशी प्रेमचंद्र जी की तीन संताने थी, जिनमें से उनकी एक बेटी कमला देवी और दो बेटे अमृत राय एवं श्रीपत राय थे।

मुंशी प्रेमचंद का साहित्यिक परिचय

भारत में उपन्यास सम्राट कहे जाने वाले मुंशी प्रेमचंद अपने साहित्यिक जीवन का आरंभ वर्ष 1901 में किया था जब वह नवाबराय के नाम से उर्दू भाषा में लिखा करते थे।

उनकी पहली रचना अप्रकाशित रही इसका जिक्र उन्होंने पहली रचना नाम के अपने लेख में किया है उनका पहला उपलब्ध उपन्यास असरारे मआबिद है जिसका हिंदी रूपांतरण देवस्थान रहस्य नाम से हुआ है।

इसके बाद वर्ष 1960 में उनका पहला कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ था जिसमें देशभक्ति की भावनाओं से ओतप्रोत कहानियां थी जिसे अंग्रेजी सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर लिया गया और उसकी सारी प्रतियां भी जप्त कर ली गई तथा उन्हें भविष्य में ऐसे लेखन ना करने की चेतावनी दी गई।

अंग्रेजों द्वारा मना किए जाने के कारण उन्होंने नवाबराय से अपना नाम बदलकर प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे तथा उन्हें प्रेमचंद्र नाम से लिखने का सुझाव देने वाले दया नारायण निगम थे।

प्रेमचंद्र नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी थी जो जमाना पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। वर्ष 1915 में उस समय की प्रसिद्ध हिंदी मासिक पत्रिका सरस्वती में पहली बार उनकी कहानी सौत नाम से प्रकाशित हुई थी।

और वर्ष 1919 में उनका पहला हिंदी उपन्यास सेवासदन प्रकाशित हुआ उसके बाद से उन्होंने लगभग 300 कहानियां तथा डेढ़ दर्जन उपन्यास लिखें।

असहयोग आंदोलन के दौरान सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद वह पूरी तरह से साहित्य सर्जन में लग गए और रंगभूमि नाम के उपन्यास के लिए उन्हें मंगल प्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया।

मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं में उस दौर के समाज सुधारक आंदोलन, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आंदोलनों के सामाजिक प्रभाव को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

उन्होंने अपनी रचनाओं में दहेज, विधवा विवाह, पराधीनता, लगान, छुआ-छूत, जाति भेद, अनमोल विवाह जैसी उस दौर की सभी समस्याओं को चित्रित किया है।

यही कारण है कि उनके द्वारा हिंदी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में दिए गए उनके महान योगदानों के कारण वर्ष 1918 से 1936 तक के कालखंड को प्रेमचंद युग के नाम से जाना जाता है।

मुंशी प्रेमचंद्र का जीवन परिचय | Munshi Premchand Biography In Hindi
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मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएं

  • मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं में 18 से अधिक प्रसिद्ध उपन्यास हैं जिनमें सेवासदन, निर्मला, रंगभूमि, कर्मभूमि, गबन, गोदन आदि प्रमुख हैं।
  • उनकी कहानियों का विशाल संग्रह 8 भागों में मानसरोवर नाम से प्रकाशित है, जिसमें लगभग 300 + कहानियां संकलित हैं।
  • कर्बला, संग्राम और प्रेम की देवी नाम के उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। इसके साथ ही कुछ विचार नाम से उनके साहित्यिक निबंध प्रकाशित हैं।

प्रेमचंद्र की भाषा

मुंशी प्रेमचंद्र जी उर्दू से हिंदी में आए थे अतः उनकी भाषा में उर्दू की चुस्त लोकोक्तियां तथा मुहावरे के प्रयोग की प्रचुरता मिलती है। इसके साथ ही उनकी भाषा में सादगी एवं अलंकारिकता का समन्वय दिखाई देता है।

उनकी भाषा सहज, सरल, व्यवहारिक, प्रवाह पूर्ण, मुहावरेदार एवं प्रभावशाली है, तथा उसमें अद्भुत व्यंजनाशक्ति भी विद्यमान है। और उनकी भाषा पात्रों के अनुसार परिवर्तित हो जाती है।

मुंशी प्रेमचंद्र जी की शैली

मुंशी प्रेमचंद जी की शैली आकर्षक है और इसमें मार्मिकता विद्यमान हैं उनकी रचनाओं में चार प्रकार की शैलियां उपलब्ध होती हैं जो कि- वर्णनात्मक, व्यंगात्मक, भावात्मक और विवेचनात्मक हैं तथा चित्रात्मकता उनकी रचनाओं की विशेषता है।

साहित्य में स्थान

साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचंद्र का योगदान अतुलनीय है उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से इन लोगों को साहित्य से जोड़ने का काम किया है और हिंदी साहित्य को एक नया मोड़ प्रदान किया है।

उन्होंने आम आदमी को अपनी रचनाओं का विषय बनाया है और उनकी रचनाएं विनायक हुए जिन्हें भारतीय समाज अछूत और घृणित समझता था। उन्होंने अपने प्रगतिशील विचारों को द्रढता से तर्क देते हुए समाज के सामने प्रस्तुत किया है।

उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए बंगाल के उपन्यासकार शरदचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया और उनके पुत्र ने उन्हें कलम का सिपाही नाम दिया।

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियां (Munshi Premchand Stories)

  • दो बैलों की कथा
  • ईदगाह
  • अनाथ लड़की
  • ईश्वरीय न्याय
  • इज्जत का खून
  • नरक का मार्ग
  • नैराश्य
  • नैराश्य लीला
  • पैपुजी
  • माता का ह्रदय
  • मिलाप
  • स्वर्ग की देवी
  • वासना की कड़ियां
  • पूस की रात
  • बैंक का दिवाला
  • बेटों वाली विधवा
  • बड़े घर की बेटी
  • बड़े बाबू
  • बंद दरवाजा
  • बांका जमींदार
  • मैकू
  • मंदिर और मस्जिद
  • नसीहतों का दफ्तर
  • नादान दोस्त
  • पंच परमेश्वर
  • कोई दुख ना हो तो बकरी खरीद ला
  • घमंड का पुतला
  • दिल की रानी
  • ठाकुर का कुआं
  • तेतर
  • त्रिशूल
  • दूध का दाम
  • होली की छुट्टी
  • नमक का दरोगा
  • सवा सेर गेहूं

मुंशी प्रेमचंद्र के कहानी संग्रह (Munshi Premchand Story Collection)

  • सप्त सरोज
  • नवनिधि
  • प्रेम पूर्णिमा
  • प्रेम पचीसी
  • प्रेम प्रतिमा
  • प्रेम द्वादशी
  • समरयात्रा
  • मानसरोवर

मुंशी प्रेमचंद्र जी के उपन्यास (Munshi Premchand Nobles)

  • देवस्थान रहस्य
  • हमखुर्मा व हमसवाब
  • किशना
  • रूठी रानी
  • जलवाए हिसार
  • सेवासदन
  • प्रेमाश्रय
  • रंगभूमि
  • निर्मला
  • अहंकार
  • प्रतिज्ञा
  • गबन
  • कर्मभूमि
  • गोदान

मुंशी प्रेमचंद्र जी के नाटक (Munshi Premchand Dram)

  • संग्राम (1923)
  • कर्बला (1924)
  • प्रेम की देवी (1933)

मुंशी प्रेमचंद जी की मृत्यु

अपनी बहुमुखी प्रतिभा से हिंदी साहित्य को एक नया आकार देने वाले मुंशी प्रेमचंद्र जी 8 अक्टूबर 1936 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में पंचतत्व में विलीन हो गए।

आज भले ही वह हमारे बीच उपस्थित नहीं है परंतु उन्होंने अपनी रचनाओं के जरिए हमें जो राह दिखाई है उसको सदा ही याद रखा जाएगा।

मुंशी प्रेमचंद के अनमोल वचन

“कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुतबा दिखाने से नहीं।”

“मन एक भीरू शत्रु है, जो सदैव पीठ के पीछे से वार करता है।”

“चापलूसी का जहरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझ कर पी ना जाएं।”

“महान व्यक्ति महत्वाकांक्षा के प्रेम से बहुत अधिक आकर्षित होते हैं।”

“आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपने घर की याद आती है।”

“जिस प्रकार नेत्रहीन के लिए दर्पण बेकार है, उसी प्रकार बुद्धिहीन के लिए विद्या बेकार है।”

“विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला।”

“सिर्फ उसी को अपनी संपत्ति समझो, जिसे तुमने मेहनत से कमाया है।”

“धन खोकर यदि हम अपनी आत्मा को पा सके, यह तो कोई महंगा सौदा नहीं है।”

मुंशी प्रेमचंद्र जी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण रोचक तथ्य-

  • उनका जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी लमही नामक गांव में हुआ था।
  • उनके बचपन का नाम धनपत राय था जिसे बदलकर उन्होंने प्रेमचंद्र रखा था।
  • उन्होंने अपने जीवन में कभी भी पारिवारिक स्नेह और मातृत्व दुलार को प्राप्त नहीं कर पाए।
  • बहुत ही कम उम्र में उनका उनका विवाह बिना उनकी मर्जी के हो गया था।
  • उन्होंने सर्वप्रथम नवाबराय के नाम से लेखक का कार्य शुरू किया था।
  • अंग्रेजों के मना करने के बाद वह नवाबराय के स्थान पर प्रेमचंद्र के नाम से लिखने लगे।
  • वह विधवा विवाह के समर्थक थे इसी कारण उन्होंने अपनी पहली पत्नी को तलाक देने के बाद एक 25 वर्षीय विधवा शिवरानी देवी से विवाह किया था।
  • उन्होंने बहुत ही कम उम्र में अपनी माता को खो दिया था।
  • उनकी पहली शादी के कुछ समय बाद ही उनके पिता का भी स्वर्गवास हो गया था और परिवार की पूरी जिम्मेदारियां उनके ऊपर आ गई।

FAQ:

प्रेमचंद्र का जन्म कब और कहां हुआ?

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश में वाराणसी के निकट लमही नामक ग्राम में हुआ था।

प्रेमचंद्र की मृत्यु कब हुई थी?

8 अक्टूबर 1936 को मुंशी प्रेमचंद्र पंचतत्व में विलीन हो गए थे।

प्रेमचंद्र की दो रचनाएं क्या है?

उन्होंने सेवासदन, रंगभूमि, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि उपन्यास और कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर आदि 300 से अधिक कहानियां लिखी है

मुंशी प्रेमचंद्र की कुल कितनी रचनाएं हैं?

मुंशी प्रेमचंद्र जी ने अपने जीवन में लगभग 115 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद, सात बाल पुस्तकें और हजारों लेख सहित संपादकीय भाषण एवं भूमिका पत्र आदि की रचना की है।

प्रेमचंद्र की पहली कहानी क्या थी?

मुंशी प्रेमचंद की पहली कहानी का नाम बड़े घर की बेटी था, जो कि जमाना पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।

मुंशी प्रेमचंद की आखिरी कहानी कौन सी है?

प्रेमचंद्र जी की अंतिम कहानी क्रिकेट मैच थी जो कि उनकी मृत्यु के बाद 1938 में जमाना पत्रिका में छपी थी।

मुंशी प्रेमचंद्र को कलम का सिपाही क्यों कहा जाता है?

मुंशी प्रेमचंद्र का वास्तविक नाम धनपत राय था। उनके लेखन का मुकाबला आज के बड़े-बड़े लेखक भी नहीं कर सकते हैं, इसलिए अमृतराय ने मुंशी प्रेमचंद्र जी को कलम के सिपाही की उपाधि दी है।

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निष्‍कर्ष

मैं आशा करता हूं की आपको “मुंशी प्रेमचंद्र का जीवन परिचय (Munshi Premchand Biography In Hindi) पसंद आया होगा। अगर आपको यह पोस्ट पसंद आया है तो कमेंट करके अपनी राय दे, और इसे अपने दोस्तो और सोशल मीडिया में भी शेयर करे।

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