गुरु अर्जुन देव का जीवन परिचय, जीवन, जन्म, शिक्षा, उम्र, पत्नी, बच्चे, संदेश, विचार (Guru Arjun Dev Biography In Hindi, Wiki, Family, Education, Birthday, Children, Age, Wife, Guru Arjun Dev Aur Jahangir, Quotes, Books, Pomes, Death, Death Resion, Death Place, Jyanti, Guru Arjun Dev Saheedi Divash)
सिखों के पांचवें गुरु और शांति एवं धर्म के महान पुजारी गुरु अर्जुन देव बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सेवा में व्यतीत कर दिया।
लोगों द्वारा देवता के रूप में माने जाने वाले गुरु अर्जुन देव हमेशा समाज सेवा में लगे रहते थे और ईश्वर की भक्ति करते थे इसके साथ ही उन की अमर गाथा आज भी पंजाब प्रांत के हर घर में सुनाई जाती है।
गुरु अर्जुन देव जी की निर्मल प्रवृत्ति सहृदयता कर्तव्यनिष्ठा तथा धार्मिक एवं मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पण को देखते हुए गुरु राम दास जी ने उन्हें सन 1581 ईसवी में पांचवे गुरु के रूप में गद्दी पर सुशोभित किया था।
तो दोस्तों को आज के अपने लेख गुरु अर्जुन देव का जीवन परिचय (Guru Arjun Dev Biography In Hindi) में हम आपको उनके बारे में बहुत सी रोचक जानकारियां देंगे तो, आइए जानते हैं उनके बारे में-
गुरु अर्जुन देव का जीवन परिचय
नाम (Name) | गुरु अर्जुन देव |
उपनाम (Nick Name) | शहीदों के सरताज शहीदों के ताज |
प्रसिद्ध (Famous For) | सिख धार्मिक के पांचवें गुरु के रूप में |
जन्म (Date Of Birth) | 15 अप्रैल 1563 |
जन्म स्थान (Birth Place) | गोइंदवाल साहिब, तरनतारन, भारत |
धर्म (Religion) | सिख |
उम्र (Age) | 43 वर्ष (मृत्यु के समय) |
नागरिकता (Nationality) | भारतीय |
गृह नगर (Home Town) | गोइंदवाल साहिब, तरनतारन, भारत |
शैक्षिक योग्यता (Education) | ज्ञात नहीं |
गुरुसिप (Guruship, Tempered) | 1581 से 1606 तक |
वैवाहिक स्थिति (Marrital Status) | विवाहित |
मृत्यु (Death) | 30 मई 1606 |
मृत्यु का स्थान (Death Place) | लाहौर, पाकिस्तान |
गुरु अर्जुन देव कौन है? (Who Is Guru Arjun Dev?)
गोइंदवाल साहिब, तरनतारन में 15 अप्रैल 1563 को जन्मे और गुरु ग्रंथ साहिब की रचना करने वाले ‘गुरु अर्जुन देव’ सिखों के पांचवें धर्मगुरु थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सेवा के लिए न्योछावर कर दिया था।
उनके पिताजी का नाम गुरु रामदास जी था जो कि सिखों के चौथे गुरु थे एवं उनकी माताजी का नाम भानीजी था जोकि एक कुशल ग्रहणी थी। उनके परिवार में उनके माता-पिता के अलावा उनके दो भाई प्रथ्वी चंद्र और महादेव थे।
गुरु अर्जुन देव अपने माता पिता की सबसे छोटी संतान थे और उनके सबसे बड़े भाई पृथ्वी चंद्र लालची एवं दोषपूर्ण स्वभाव के व्यक्ति थे तो वही उनके दूसरे भाई महादेव एक साधु की तरह तेज ने सांसारिक गतिविधियों में कोई दिलचस्पी नहीं थी।
गुरु अर्जुन देव अपने सभी भाइयों में सबसे आज्ञाकारी संवेदनशील ईश्वर की प्रार्थना में समर्पित एक विद्वान कवि एवं शांत हुआ पवित्र स्वभाव के युवा थे।
गुरु अर्जुन देव की शिक्षा (Guru Arjun Dev Education)
गुरु अर्जुन देव जी की देखभाल गुरु अमरदास और गुरु बाबा बुद्ध जी जैसे महापुरुषों की देखरेख में हुई है और उन्होंने गोइंदवाल साहिब धर्मशाला में गुरु अमरदास जी से गुरुमुखी की शिक्षा प्राप्त की है।
उन्होंने पंडित बेनी से संस्कृत अपने चाचा मोहरी से गणित की शिक्षा प्राप्त की है इसके अलावा उन्होंने अपने चाचा मोहना से ध्यान की विधि भी सीखी है।
गुरु अर्जुन देव का परिवार (Guru Arjun Dev Family)
पिता का नाम (Father’s name) | गुरु रामदास |
माता का नाम (Mother’s Name) | माता भानीजी |
बहन का नाम (Sister’s Name) | कोई नहीं |
भाई का नाम (Brother’s Name) | पृथ्वी चंद्र महादेव |
पत्नी का नाम (Wife’s Name) | माता गंगा |
बेटी के नाम (Daughter’s Name) | कोई नहीं |
बेटे का नाम (Son’s Name) | गुरु हरविंदर सिंह |
गुरु अर्जुन देव की पत्नी, बच्चे (Guru Arjun Dev Wife, Children)
गुरु अर्जुन देव जी का विवाह 19 जून 1589 को पंजाब राज्य में वेल्लोर से 10 किलोमीटर पश्चिम में मऊ गांव के भाई कृष्ण चंद्र की बेटी माता गंगा के साथ हुआ था।
उनके बेटे का नाम हरगोविंद था जो गुरु अर्जुन देव के बाद सिखों के छठे में गुरु बने थे। गुरु हरगोविंद अपने माता पिता की एकलौती संतान थे और उन्होंने भी अपना पूरा जीवन लोगों की सहायता एवं उन्हें सन्मार्ग दिखाने में व्यतीत कर दिया था।
गुरु अर्जुन देव जी के कार्य (Guru Arjun Dev Works)
ग्रंथ साहिब की रचना
एक दिन गद्दी पर बैठने के बाद गुरु अर्जुन देव जी की मन में विचार आया कि क्यों न सभी गुरुओं की वाणी का संकलन करें एक ग्रंथ बनाया जाए।
जल्द ही उन्होंने अपने इस विचार पर अमल करना शुरू कर दिया उस समय नानक पानी की मूल प्रति गुरु अर्जुन देव के मामा हम मोहन जी के पास थी।
उन्होंने वह प्रति लाने के लिए भाई गुरुदास को मोहन जी के पास भेजा परंतु मोहन जी ने प्रति देने से इंकार कर दिया इसके बाद उन्होंने भाई बुड्ढा भेजा वह भी खाली हाथ लौट आए।
इसके बाद गुरु अर्जुन स्वयं उनके घर पहुंच गए परंतु सेवक ने उन्हें घर में प्रवेश करने से रोक दिया परंतु गुरुजी भी अपनी धुन के पक्के थे और वह द्वार पर ही बैठ कर अपने मामा से गा-गाकर विनती करने लगे।
इस पर मोहन जी ने उन्हें बहुत डांटा फटकारा और पुनः ध्यान करने के लिए चले गए लेकिन गुरु अर्जुन देव पहले की तरह गाते रहे और अंतत उनके धैर्य, विनम्रता और जिनको देखकर मोहनजी का दिल पसीजा।
और बाहर निकलकर बोले –
बेटा नानकवाणी की मूल प्रति मैं तुम्हें दूंगा क्योंकि तुम ही उसे लेने के सही पात्र हो। इसके बाद गुरु अर्जुन देव ने सभी गुरुओं की वाणी और अन्य धर्मों के संतों के भजनों को संकलित कर एक एक ग्रंथ बनाया जिसका नाम ‘ग्रंथसाहिब’ रखा और उसे हरमंदिर में स्थापित करवाया।
हरमंदिर साहिब/ स्वर्ण मंदिर का निर्माण
गुरु अर्जुन देव ने 1588 ईस्वी में गुरु रामदास जी द्वारा बनवाए गए अमृतसर तालाब के बीच में हरमंदिर साहिब को बनवाने की नींव रखी जिसे आज स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है।
आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि गुरु अर्जुन देव जी ने हर मंदिर की आधारशिला रखने के लिए लाहौर के एक मुस्लिम संत मियां मीर को आमंत्रित किया था।
वर्तमान के स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ क दरवाजे चारों जातियों के धर्म और संस्कृति को दर्शाते हैं एवं करीब 400 वर्ष पुराने इस मंदिर का नक्शा खुद गुरु अर्जुन देव जी ने तैयार किया था।
गुरु गोविंद सिंह की शिक्षाएं, उपदेश (Guru Arjun Dev Quotes)
“प्रत्येक सिख को सवेरे उठने के बाद वाहे गुरु मंत्र का उच्चारण करवानी अवश्य पढ़नी चाहिए!”
“अपने हाथों की कमाई से गुजारा करें तथा असहाय लोगों की मदद करें”
“अहं के भाव से सदा दूर रहना चाहिए”
“अगर आप मन की शांति चाहते हो तो, जैसा आप लोगों को कहते हो उसी प्रकार आप भी करो”
गुरु अर्जुन देव की जयंती, गुरु अर्जुन देव शहीदी दिवस (Guru Arjun Dev Jayanti, Saheedi Divash)
हर वर्ष 16 जून को सिख समुदाय के अनुयाई बड़ी धूमधाम से गुरु अर्जुन देव जी की जयंती मनाते हैं इस अवसर पर गुरुद्वारों में कई प्रकार के धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है और नियत समय पर गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ होता है।
गुरु अर्जुन देव जी की शहादत, मृत्यु (Guru Arjun Dev Death)
गुरु अर्जुन देव और जहांगीर के बीच संबंध
मुगल सम्राट अकबर खुद गुरु अर्जुन देव के मुरीद थे किंतु अकबर की मृत्यु के बाद जहांगीर के शासनकाल में उनकी मुगलों के साथ रिश्तो में खटास उत्पन्न हो गई।
ऐसा कहा जाता है कि शहजादा खुसरो को जब मुगल शासक जहांगीर ने देश निकाला दिया था उस समय गुरु अर्जुन देव ने उन्हें शरण दी थी इसी वजह से जहांगीर ने उन्हें मौत की सजा दी थी।
इसकी जिम्मेदारी है जहांगीर ने अपने एक अधिकारी मुर्तजा खान को दी थी जिसने गुरु अर्जुन देव को विभिन्न प्रकार की यातनाएं दीं जिनमें उन्हें लोहे की चिलचिलाती थाली पर बिठाया और उनके शरीर पर उबाती रेत डाल दी और फिर गर्म उबलते पानी में उन्हें डुबोया गया।
इस प्रकार की अमानवीय यातनाएं सहने वाले गुरु अर्जुन देव ‘तेरा किया मीठा लागे/ हरि नाम पदारथ नानक मांगे’ शब्द का उच्चारण करते हुए सन 1606 ईसवी में अमर शहीदों को प्राप्त कर गए।
अपने जीवन काल में गुरु जी ने धर्म के नाम पर आडंबर और अंधविश्वास पर कड़ा प्रहार किया और सती प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ डटकर खड़े रहे।
आध्यात्मिक चिंतक एवं उपदेश सागर व समाज सुधारक गुरु अर्जुन देव जिन्होंने अपने पवित्र वचनों से दुनिया को उपदेश देने का कार्य किया उनका जीवनकाल अब मात्र 43 वर्ष का रहा परंतु उन्होंने मानव जाति के लिए महान योगदानों से आध्यात्मिक जगत में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है।
गुरु गोविंद जी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण रोचक तथ्य-
- गुरु अर्जुन देव का जन्म एवं पालन पोषण सि के चौथे गुरु गुरु रामदास जी के परिवार में हुआ है।
- वह बचपन से ही निर्मल प्रवृत्ति, सहृदयता, कर्तव्यनिष्ठता एवं धार्मिक व मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पित थे।
- गुरु राम दास जी ने अपने 1581 ईस्वी में सिक्खों के पांचवे गुरु के रूप में गद्दी पर सुशोभित किया था।
- उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन किया जो मानव जाति को सबसे बड़ी देन है।
- उन्होंने स्वयं की उच्चारित रागों में 2,218 शब्दों को भी गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज किया है।
- उन्होंने अपने जीवन में धर्म के नाम पर आडंबर और अंधविश्वास पर कड़ा प्रहार किया है।
- गुरु अर्जन देव जी ने सती प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों का भी विरोध किया है।
- उन्होंने जहांगीर के विद्रोही पुत्र को शुरू को जगह दी थी जिसके कारण उनके और मुगलों के संबंधों के बीच खटास उत्पन्न हो गई थी।
FAQ:
गुरु ग्रंथ साहिब की रचना किसने की?
गुरु ग्रंथ साहिब की रचना सिक्खों के चौथे गुरु रामदास जी के पुत्र व पांचवें से के गुरु गुरु अर्जुन देव जी ने की थी।
हरमंदर / स्वर्ण मंदिर का निर्माण किसने करवाया?
करीब 400 वर्ष पुराने स्वर्ण मंदिर का निर्माण गुरु अर्जुन देव जी ने करवाया था जिसकी आधारशिला रखने के लिए उन्होंने लाहौर के एक मुस्लिम संत मियां मीर को आमंत्रित किया था।
गुरु अर्जुन देव की मृत्यु कब हुई?
मुगल शासक जहांगीर द्वारा दी गई अमानवीय यातना को सहने के बाद गुरु अर्जुन देव जी 30 मई 1606 को पंचतत्व में विलीन हो गए।
गुरु अर्जुन देव जी की पत्नी कौन है?
गुरु अर्जुन देव जी का विवाह 19 जून 1589 को पंजाब राज्य में वेल्लोर से 10 किलोमीटर पश्चिम में मऊ गांव के भाई कृष्ण चंद्र की बेटी माता गंगा के साथ हुआ था।
गुरु अर्जुन देव का जन्म कब और कहां हुआ?
गुरु अर्जुन देव का जन्म से के धर्म के चौथे गुरू रामदास जीवा माता भानीजी के घर वैशाख वादी 7 (संवत् 1620 में 15 अप्रैल 1563) को गोइंदवाल (अमृतसर) में हुआ।
गुरु अर्जुन देव को किसने मारा?
सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव को मुगल शासक जहांगीर ने मृत्यु का फरमान सुनाया था।
गुरु अर्जुन देव जी की जयंती कब है?
हर वर्ष 16 जून को सिख समुदाय के अनुयाई बड़ी धूमधाम से गुरु अर्जुन देव जी की जयंती मनाते हैं इस अवसर पर गुरुद्वारों में कई प्रकार के धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है और नियत समय पर गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ होता है।
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निष्कर्ष
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