सम्राट अशोक का जीवन परिचय, जीवनी, जन्म, परिवार, साम्राज्य, रानियां, कलिंग का युद्ध, बौद्ध धर्म (Samrat Ashok Biography In Hindi, Wiki,
सम्राट अशोक विश्व प्रसिद्ध एवं शक्तिशाली भारतीय मौर्य राजवंश के एक महान सम्राट थे, बौद्ध धर्म को संरक्षण देने वाले प्रतापी राजा अशोक का पूरा नाम देवानांप्रिया अशोक था जिसका अर्थ होता है देवताओं का प्रिय।
उनका राज्य उत्तर में हिंदूकुश, तक्षशिला की श्रेणियों से लेकर गोदावरी नदी, स्वर्ण गिरी पहाड़ी के दक्षिण तथा मैसूर तक एवं पूर्व में बंगाल पाटलिपुत्र से पश्चिम में अफगानिस्तान, ईरान, बलूचिस्तान तक पहुंच गया था।
उन्हें चक्रवर्ती सम्राट अशोक भी कहा जाता है जिसका अर्थ है सम्राटों का सम्राट और यह स्थान भारत में केवल सम्राट अशोक को ही मिला है। इसके साथ ही उन्हें अपने विस्तृत साम्राज्य के बेहतर व कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भी जाना जाता है।
आज की अपने लेख सम्राट अशोक का जीवन परिचय (Samrat Ashok Biography In Hindi) के जरिए हम देखेंगे कि कैसे एक राजा जो कि अपनी क्रूरता के लिए जाना जाता था उसने यह शांति का मार्ग अपनाया और एक बेहतर एवं कुशल शासन की नींव रखी।
सम्राट अशोक का जीवन परिचय
नाम (Full Name) | सम्राट अशोक |
प्रसिद्ध (Famous for) | एक महान राजा के रूप में |
उपनाम(Other Name) | सम्राट अशोक, अशोक दी ग्रेट, चंद्रशोक, देवनाम्प्रिया, प्रियदर्शी |
उपाधि (Degree) | चक्रवर्ती सम्राट |
जन्म (Date Of Birth) | 304 ईसा पूर्व |
जन्म स्थान (Birth Place) | पाटलिपुत्र |
शासनकाल (Reign time) | 269 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक |
रचनाएं (Creations) | अशोक स्तंभ और अशोक चिन्ह |
वैवाहिक स्थिति (Marrital Status) | विवाहित |
मृत्यु की तारीख (Death Date) | 232 ईसा पूर्व |
मृत्यु का स्थान (Death Place) | तक्षशिला |
सम्राट अशोक कौन थे? (Who Is Samrat Ashok?)
सम्राट अशोक भारत के मौर्य सम्राट बिंदुसार के पुत्र थे जिनका जन्म लगभग 304 ईसा पूर्व माना जाता है अशोक अपने सभी 101 पुत्रों में सबसे बड़े थे और अपने भाइयों के साथ गृह युद्ध के बाद 272 ईसा पूर्व में उन्हें राजगद्दी मिली और उन्होंने 232 ईसा पूर्व तक उसमें शासन किया।
सम्राट अशोक का जन्म एवं शुरुआती जीवन
इतिहास के सबसे शक्तिशाली और ताकतवर योद्धा में से एक सम्राट अशोक का जन्म करीब आज से 304 ईसा पूर्व मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य के पोते के रूप में बिहार के पाटलिपुत्र में हुआ था।
उनके पिता मौर्य साम्राज्य के दूसरे सम्राट बिंदुसार थे और उनकी माता का नाम शुभद्रांगी था। उनके पिता की लंका की परंपरा के मुताबिक करीब 16 पटरानियां थी जिनसे उन्हें कुल 101 पुत्र थे।
अशोक अपने सभी भाइयों में सबसे बड़े थे और उनके साथ उनके भाई तिष्य और सुशीम का ही उल्लेख इतिहास के पन्नों में मिलता है सम्राट अशोक का पूरा नाम देवानांप्रिय था, जिसका अर्थ होता है देवताओं का प्रिय।
राजवंश परिवार में पैदा हुए सम्राट अशोक बचपन से ही बेहद प्रतिभावान और तीव्र बुद्धि के बालक थे शुरू से ही उनके अंदर युद्ध और सैन्य कौशल के गुण दिखाई देने लगे थे।
उनके इस गुण को निकालने के लिए उन्हें शाही प्रशिक्षण भी दिया गया था इसके साथ ही सम्राट अशोक तीरंदाजी में शुरू से ही कुशलता और इसके लिए वह एक उच्च श्रेणी के शिकारी भी कहलाते थे।
भारतीय इतिहास के इस महान योद्धा के पास लकड़ी की डंड़े से ही एक शेर को मारने की अद्भुत क्षमता थी वह एक जिंदादिल शिकारी और साहसी योद्धा थे उनके इसी गुणों के कारण उन्हें उस समय।मौर्य साम्राज्य के अवंती में हो रहे दंगों को रोकने के लिए भेजा गया था।
उन्होंने साम्राज्य के विभिन्न मामलों में अपने पिता की मदद करना शुरू कर दिया था और जब भी वह कोई काम करते थे तो अपनी प्रजा का पूरा ध्यान रखते थे इसलिए उनकी प्रजा उन्हें काफी पसंद करने लगी थी।
सम्राट अशोक का परिवार (Samrat Ashok Family)
पिता का नाम (Father’s Name) | सम्राट बिंदुसार |
माता का नाम (Mother’s Name) | रानी सुभाद्रंगी |
भाई का नाम (Brother’s Name) | तिष्य और सुशीम |
पत्नियों के नाम (Wife’s Name) | देवी, कारुवाकी, पद्मावती तिष्यरक्षिता, असंधिमित्रा |
बेटों के नाम (Son’s Name) | महेंद्र, तिलवा और कुणाल |
बेटियों के नाम (Daughter’s Name) | चारुमति और संघमित्रा |
सम्राट अशोक की पत्नियां (Samrat Ashok Wife’s & Queen’s)
सम्राट अशोक ने अपने जीवन काल में कुल 5 विवाह किए हैं और उनकी पत्नियों के नाम – देवी, कारुवाकी, पद्मावती तिष्यरक्षिता, असंधिमित्रा है।
ओशो की पहली पत्नी का नाम देवी था जो वेरी सालगिरह की रहने वाली थी अशोक विवाह उज्जैन के वायसराय रहने के दौरान किया था।
सम्राट अशोक के पुत्र, पुत्री (Samrat Ashok Son And Daughter)
सम्राट अशोक के पत्तों के नाम- महेंद्र, कुणाल और तीवाल था जबकि उनकी दो पुत्रियां थी जिनके नाम संघमित्रा और चारुमति था।
महेंद्र, चारुमति और संघमित्रा रानी देवी के पुत्र और पुत्री थी, जबकि कारूवाकी के पुत्र का नाम तिलवा और पद्मावती के पुत्र का नाम कुणाल था वही असंधिमित्रा की कोई संतान नहीं होने की वजह से उन्होंने देवी की पुत्री चारुमति को पाला था और उसे अपनी पुत्री मानती थी।
सम्राट अशोक का शासन एवं साम्राज्य विस्तार
जब सम्राट अशोक के बड़े भाई सुशील अवंति की राजधानी उज्जैन के प्रांत पाल थे उस दौरान अवंती में हो रहे विद्रोह में भारतीय और यूनानी मूल के लोगों के बीच दंगा भड़क उठा
उनके इस कार्य से प्रभावित होकर राजा बिंदुसार ने सम्राट अशोक को मौर्य वंश का अगला शासक नियुक्त कर दिया अवंती में हो रहे विद्रोह को दबाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद सम्राट अशोक को अवंती प्रांत के वायसराय के रूप में भी नियुक्त कर दिया गया था।
अशोक सम्राट इस दौरान अपनी छवि एक कुशल राजनीतिज्ञ योद्धा के रूप में बना चुके थे इसके बाद करीब वर्ष 272 ईसा पूर्व में सम्राट अशोक के पिता बिंदुसार की मृत्यु हो गई।
इसके बाद सम्राट अशोक की ताजा बनाए जाने को लेकर और सम्राट अशोक और उनके भाइयों के बीच घमासान युद्ध हुआ और जिसमें सम्राट अशोक विजई हुए और उन्हें शासन प्राप्त हुआ।
कुछ इतिहासकारों के मुताबिक 268 ईसा पूर्व के दौरान मौर्य वंश के सम्राट अशोक ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए करीब 8 सालों तक युद्ध लड़ा और इस दौरान उन्होंने ना सिर्फ भारत के ही उपमहाद्वीप तक मौर्य साम्राज्य का विस्तार किया बल्कि भारत और ईरान की सीमा के साथ-साथ अफगानिस्तान के हिंदूकुश में भी मौर्य साम्राज्य का सिक्का चलवाया।
इसके अलावा महान अशोक ने दक्षिण के मैसूर कर्नाटक और कृष्ण गोदावरी की घाटी में भी कब्जा कर लिया था उनकी साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र और उप राजधानी तक्षशिला एवं उज्जैन थी।
इस तरह सम्राट अशोक का धीरे-धीरे साम्राज्य बढ़ता ही चला गया और उनका साम्राज्य उस समय का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य बना हालांकि सम्राट अशोक मौर्य साम्राज्य का विस्तार तमिलनाडु, श्रीलंका और केरल में करने में नाकामयाब रहे हैं।
कलिंग का युद्ध और सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तन
सम्राट अशोक ने अपने राज्य अभिषेक के साथ में वर्ष ही कलिंग पर आक्रमण किया था जिसमें बहुत खून खराबा हुआ और सम्राट अशोक के 13वें शिलालेख के अनुसार यह बताया गया है कि इस युद्ध में दोनों तरफ से करीब 1लाख लोगों की मौत हुई थी।
और बहुत लोग घायल भी हुए थे जब सम्राट अशोक ने इस नरसंहार को अपनी आंखों से देखा तो वह काफी दुखी हुए और इस युद्ध से दुखी होकर उन्होंने अपने राज्य में सामाजिक और धार्मिक प्रचार करना आरंभ कर दिया।
इस घटना के बाद सम्राट अशोक का मन मानव और जीवो के प्रति दया के भाव से भर गया इस घटना के बाद सम्राट अशोक ने जो धंधा करने का प्रण लिया और लोगों के बीच शांति का प्रचार किया।
सम्राट अशोक और बौद्ध धर्म
कलिंग के युद्ध में हुई छाती तथा नरसंहार से सम्राट अशोक का मन युद्ध से ऊब गया और वह अपने कृत्य को लेकर व्यथित हो उठे इसी शोक से उबरने के लिए वह बुद्ध के उपदेशों के करीब आते गए और अंत में उन्होंने बौद्ध धर्म की नीतियों से अपने शासन को चलाने का निश्चय किया।
बौद्ध धर्म के नियम बाद में उन्होंने अपने जीवन में भी उतारने का प्रयास किया उन्होंने शिकार तथा पशु हत्या करना छोड़ दी और सभी बौद्ध धर्म के भिक्षुओं को खुलकर दान देना आरंभ कर दिया और जनकल्याण के लिए उन्होंने चिकित्सालय पाठशाला तथा सड़कों आदि का निर्माण भी करवाया।
उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए धाम में प्रचारकों को नेपाल, श्रीलंका, अफगानिस्तान, सीरिया, मिश्र तथा यूनान भी भेजा। इसी कार्य के लिए उन्होंने अपने पुत्र एवं पुत्री को भी विभिन्न यात्राओं पर भेजा परंतु इस कार्य में सबसे ज्यादा सफलता उनके पुत्र महेंद्र को मिली जिसने श्री लंका के राजा तिस्स को बहुत धर्म से दीक्षित किया और तिस्स ने बौद्ध धर्म को अपनाते हुए अशोक से प्रेरित होकर स्वयं को देवनाम्प्रिया की उपाधि दी।
सम्राट अशोक ने ही अपने शासनकाल के दौरान पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन किया था जिसकी अध्यक्षता मुगाली पुत्र शिष्या ने की थी और यही अभिधम्मपटिक की रचना भी हुई थी।
सम्राट अशोक ने स्वयं बौद्ध धर्म का प्रचार प्रारंभ धर्म यत्राओं से किया वह अभिषेक के दसवें वर्ष बोधगया की यात्रा पर भी गए और राज्याभिषेक के बीच में वर्ष उन्होंने लुंबिनी ग्राम की यात्रा की थी।
सम्राट अशोक अहिंसा, शांति तथा लोक कल्याणकारी नीतियों के विश्वविख्यात तथा अतुलनीय सम्राट हैं। एच जी वेल्स के अनुसार-“सम्राट अशोक का चरित्र इतिहास के स्तंभों को भरने वाली राजाओं सम्राटों धर्माधिकारी ओं संत महात्माओं आदि के बीच प्रकाशमान है और आकाश में प्राया एकाकी तारा की तरह चमकता है।”
सम्राट अशोक के शिलालेख
सम्राट अशोक ने अपने द्वारा कई अभिलेख लिखो आए हैं जिनमें से कुछ इतिहासकारों को प्राप्त हुए हैं जिन्हें उन्होंने स्तंभों चट्टानों और गुफाओं की दीवारों में अपने शासन काल के समय खुद बाय थे।
उनके द्वारा करवाए गए यह शिलालेख आधुनिक बांग्लादेश, भारत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगह जगह पर मिलते हैं और बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन परमाणु में से एक हैं। सम्राट अशोक के भारत में प्राप्त कुछ शिलालेख और उनके स्थान-
शिलालेख | स्थान |
---|---|
रूपनाथ | जबलपुर, मध्य प्रदेश |
बैराट | जयपुर राजस्थान (वर्तमान में कोलकाता संग्रहालय में) |
मस्की | रायचूर, कर्नाटक |
जौगढ़ | गंजाम, उड़ीसा |
धौली | पुरी ,उड़ीसा |
गुर्जरा | दतिया ,मध्य प्रदेश |
गाधीमढ | रायचूर, कर्नाटक |
ब्रह्मगिरी | चित्रदुर्ग, कर्नाटक |
सहसराम | शाहाबाद, बिहार |
दिल्ली | अमर कॉलोनी, दिल्ली |
येर्रागुड़ी | कर्नूल, आंध्र प्रदेश |
अहरौरा | मिर्जापुर ,उत्तर प्रदेश |
पल्लीगुंडु | गवीमट,के पास रायचूर कर्नाटक |
राजोलमंडगिरी | बल्लारी ,कर्नाटक |
सिद्धपुर | चित्रदुर्ग कर्नाटक |
सम्राट अशोक का अशोक चक्र और शेरों की त्रिमूर्ति
भारत का राष्ट्रीय चिन्ह अशोक चक्र और शेरों का त्रिमूर्ति भी अशोक महान की देन है यह कार्य अशोक द्वारा निर्मित स्तम्भों और स्तूपों पर खुदे हुए हैं।
सम्राट अशोक का अशोक चक्र से धर्म चक्र के नाम से भी जाना जाता है आज हमें भारत गणराज्य के तिरंगे के बीच में दिखाई देता है त्रिमूर्ति सारनाथ मैं बौद्ध स्तप के स्तंभों पर बनी चट्टान की मूर्तियों की प्रतिकृति है।
सम्राट अशोक की मृत्यु (Samrat Ashoka Death)
पूरे भारतवर्ष में फैले एक विस्तृत एवं महान मौर्य साम्राज्य में लगभग 40 वर्षों तक राज करने वाले सम्राट अशोक का निधन 71 से 72 वर्ष की उम्र में 232 ईसा वर्ष पूर्व पाटलिपुत्र में हुआ था।
उन्होंने अपने अंतिम दिनों में राज्य की कमाई को सन्यासियों में बांटना शुरू कर दिया था परंतु उनके मंत्रियों ने ऐसा करने से रोका तो उन्होंने खुद की चीजों को दान में देना शुरू कर दिया।
जब वह अपना सब कुछ दान कर चुके थे तब उन्होंने अपने पास रहने वाले एक विशिष्ट फल को भी दान के रूप में दे दिया जब अशोक का देहांत हुआ तब उनके शरीर को लगभग 7 दिनों और 7 रातों तक जलाया गया था।
सम्राट अशोक से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण रोचक तथ्य
- सम्राट अशोक को एक निडर एवं साहसी राजा और योद्धा माना जाता था।
- सम्राट अशोक की कई पत्नियां थी लेकिन सिर्फ महारानी देवी को ही उनकी रानी माना गया है।
- कभी हार ना मानने वाले सम्राट अशोक एक महान शासक होने के साथ-साथ एक अच्छे दार्शनिक भी थे।
- मौर्य वंश में 40 वर्षों के लंबे समय तक शासन करने वाले सम्राट अशोक ही एकमात्र शासक थे।
- सम्राट अशोक का अशोक चिन्ह आज के गौरवमई भारत को दर्शाता है।
- सम्राट अशोक ने अपने सिद्धांतों को धम्म में नाम दिया है।
- वह भारत के इतिहास के एक ऐसे योद्धा थे जो अपने जीवन काल में कभी हार का सामना नहीं किए।
- सम्राट अशोक मौर्य साम्राज्य को उसकी चरम सीमा तक पहुंचाया था।
- उन्होंने भीषण नरसंहार से दुखी होकर बौद्ध धर्म को अपना लिया था।
- उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए अपने पुत्र एवं पुत्रियों को विभिन्न यात्राओं पर भेजा।
- उन्होंने लगभग 84000 बौद्ध स्तूपों का निर्माण करवाया था।
- उन्होंने ही अपने शासनकाल में तीसरी बौद्ध संगीति का आयोजन किया था।
- उन्होंने अपने पूरे राज्य और अन्य स्थानों में अनेक शिलालेखों का निर्माण करवाया है जिसमें उन्होंने अपने शासन एवं धर्म की जानकारी दी है।
- सम्राट अशोक शुरुआती दौर में एक बहुत ही क्रूर एवं निर्दई शासक हुआ करते थे।
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निष्कर्ष
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